वर्ष 1912 में उन्हें मद्रास में चीफ अकाउण्टेंट के ऑफिस में क्लर्क की नौकरी भी मिल गई। वे ऑफिस का कार्य जल्दी पूरा करने के बाद, गणित का रिसर्च करते रहते, इसके बाद वे इंग्लैण्ड चले गए। वहाँ उनके कार्य को खूब प्रशंसा मिली। उनके गणित के अनूठे ज्ञान को खूब सराहना मिली।
वर्ष 1918 में उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज का फेलो (Fellow of Trinity College Cambridge) चुना गया। वह पहले भारतीय थे, जिन्हें इस सम्मान (Position) के लिए चुना गया।
बहुत मेहनती एवं धुन के पक्के थे। कोई भी विषम परिस्थिति, आर्थिक कठिनाइयाँ, बीमारी एवं अन्य परेशानियाँ उन्हें अपनी ‘धुन’ से नहीं डिगा सकीं। वे अन्ततः सफल हुए।
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